विशेष संवाददाता
जमशेदपुर के बागबेड़ा में बनी हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में मंगलवार 26 सितंबर को जाना हुआ. एक धार्मिक आयोजन में शामिल होने के लिए. सामाजिक सरोकारों से ताउम्र जुड़े रहे व संस्कारों के वाहक बैजू कुंवर जी (वैद्यनाथ कुमार) की पांचवीं पुण्यतिथि थी. उनकी स्मृति में परिवार की ओर से सुंदरकांड पाठ समेत अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया था.
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सारे कार्यक्रम बहुत व्यवस्थित तरीके से संपन्न हुए. विधि विधान का पालन हुआ. धार्मिक माहौल से पूरा इलाका गूंजयमान रहा. अनुष्ठान में शामिल होकर हर कोई पुण्य का भागीदार बना और प्रसाद के साथ बैजू बाबू का आशीर्वाद ग्रहण कर सभी लोग वहां से विदा हुए.
हमने वहां कुछ ज्यादा समय गुजारा. माहौल को करीब से देखा. बैजू बाबू को नमन करते हुए मन ही मन इस नतीजे पर पहुंचा कि यदि मनुष्य अपने जीवन काल में बैजू बाबू की तरह पुण्य कर्म को आत्मसात करे तो निश्चित तौर पर उसके परिवार समेत समस्त समाज का भला होगा.
इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे.
अब हम आपको बैजू बाबू की संक्षिप्त जीवनी की ओर ले चलते हैं.
बिहार के बक्सर जिला (तब शाहाबाद) के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत डुमरी गांव में जन्में बैजू कुंवर जी (वैद्यनाथ कुमार) एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने ताउम्र सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाने के लिए हर जतन किये.
उन्होंने गांव में खेती-बारी को संभालने की जगह नौकरी करने का इरादा किया और जशेदपुर की केबुल कंपनी (इंडियन केबल इंडस्ट्रीज लिमिटेड) में नौकरी ज्वाइन की. इसके बाद जीवन पर्यंत जमशेदपुर में रहे. उनकी जिंदगी अंतिम कई दशक जमशेदपुर स्थित बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी में बीते.
उनसे मुलाकात तो कुछेक बार हुई लेकिन पहली बार जब उन्हें देखा तभी उनके प्रभावी व्यक्तित्व का बोध हो गया था. संक्षिप्त बातचीत से ही अहसास हो गया कि हिंदू धर्म में इनकी गहरी आस्था है. संस्कारों में अटूट विश्वास है और ये चाहते हैं कि नई पीढ़ी में भी ये संस्कार रचे बसे. इसके लिए हर अभिभावक को यथासंभव उपक्रम करना चाहिए. संयोग ऐसा कि गायत्री परिवार की रीति-नीति के अनुसार इनके घर में धर्मध्वजा लहराने का काम अनवरत जारी है.
बैजू कुंवर जी ने अपने परिवार को संस्कारों से दीक्षित करने का जो काम शुरू किया था उसका प्रतिबिंब उनके छोटे बेटे प्रमोद कुमार (टुनटुन) में साफ दृष्टिगोचर नजर आया. जब बैजू बाबू कि उम्र आठवें दशक में पहुंच गई थी तब उम्रजनित बीमारियों ने उन्हें चुनौती देनी शुरू कर दी थी. तब हर बुजुर्ग की तरह उन्हें भी घर में किसी मददगार की जरूरत होती थी.
प्रमोद ने अपने पिताजी की दिनचर्या के अनुसार अपना रूटीन तय करने के काम को प्राथमिकता दी. इस क्रम में उनके सामने अपनी नौकरी के संचालन से जुड़ी चुनौतियां बड़ा अवरोध बनकर आती रही थी लेकिन पिता की सेवा को सर्वोच्च कर्तव्य मानने वाले प्रमोद ने इसके आगे बाकी चीजों को दूसरे पायदान पर रखा था.
हमने गहराई से महसूस किया कि प्रमोद पिता की सेवा को ही अपना सबकुछ समझते रहे . उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी तमाम चुनौतियों एवं परेशानियों को पिता के आशीर्वाद के भरोसे छोड़ दिया था. तब एक बड़े मीडिया हाउस से जुड़े प्रमोद ने अपने शानदार करियर के दौरान शहर से तबादले की शर्त पर प्रोन्नति के प्रस्ताव को इसलिए नहीं स्वीकार किया था क्योंकि उनके सामने पिता की सेवा को जारी रखना मुश्किल हो जाता। उन्होंने शहर नहीं छोडऩे का फैसला किया. स्पष्ट बता दिया कि पिता की सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता है. दूसरे शहर में जाकर पदोन्नति लेना वे पितृ सेवा के आगे मंजूर नहीं करेंगे.
कमाल देखिए कि प्रमोद ने पिता की सेवा के लिए जो जोखिम उठाया उसकी तत्काल बड़ी कृपा के रूप में क्षतिपूर्ति सामने आई थी. पहले मीडिया हाउस से ज्यादा बड़ा एक दूसरे मीडिया हाउस ने प्रमोद को अपने शहर में ही अपेक्षकृत बड़े पद पर रहने का ऑफर दे दिया.
यह जीवंत उदाहरण है कि पिता की सेवा का प्रतिफल किस रूप में मिलता है. अभी यह कृपा आगे भी अपनी महिमा दिखाती जा रही है.
बैजू कुंवर जी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उन्होंने जो संस्कार दिए उसे प्रमोद और परिवार के अन्य सदस्य बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं. पांचवीं पुण्यतिथि के अवसर पर वे जिस आदर और श्रद्धा के साथ याद किए गए, यह उनके द्वारा परिजनों को दिए गए संस्कारों का प्रतिफल था.
निजी कंपनी में नौकरी के बावजूद प्रमोद ने अपनी पिता की जिस तरह से सेवा की शायद उसी का प्रतिफल है कि नश्वर शरीर त्यागने के बाद भी बैजू बाबू अपने पुत्र और परिवार पर आर्शीवचन बनाए हुए हैं.आरक्षण व्यवस्था के इस कठिन काल में प्रमोद की पुत्री का सामान्य श्रेणी में एनआईटी जमशेदपुर जैसे राष्ट्रीय ख्याति के इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थान में दाखिला होना इसकी तस्दीक करता है. बैजू बाबू की इस पोती, जिसका नाम ईशा है, का कैंपस सलेक्शन एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हो चुका है. अगले साल 2024 में वह इस नई कंपनी के साथ अपने शानदार करियर का शुभारंभ करेंगी
बैजू बाबू का परिवार सुख-शांति के साथ दिन दुनी रात चौगुनी की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है तो निश्चित रूप से यह बैजू बाबू के आशीर्वाद को दर्शाता है.
पांचवीं पुण्यतिथि पर बैजू बाबू की दिव्य आत्मा को हमारा को कोटि नमन व विनम्र श्रद्धांजलि.