आज श्राद्ध कर्म पर विशेष
मृत्युंजय सिंह गौतम
जमशेदपुर। देश की प्रमुख औद्योगिक नगरी जमशेदपुर के परसुडीह खासमहाल क्षेत्र में स्थित सदर अस्पताल में पहली बार जाना हुआ था तो डॉ विमलेश कुमार से पहली मुलाकातहुई थी। चेहरे पर सौम्यता के साथ मुस्कान, व्यवहार में विनम्रता, काम के अंदाज में सेवाभाव और व्यक्तित्व में किसी की भी मदद करने की तत्परता।
जमशेदपुर में किसी डॉक्टर के व्यक्तित्व में इन सभी गुणों या पहलुओं को देखकर किंचित अचरज हुआ कि क्या ऐसा संभव है? आज के इस दौर में।
तभी यह मन में विचार आया था डॉ विमलेश कुमार का जिस चरित्र की अनुभूति हुई, उसे गढ़ने में निश्चित रूप से उनके माता पिता की अहम भूमिका रही होगी।
कुछ दिन पहले जमशेदपुर के वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रमोद कुमार से पता चला कि डॉक्टर विमलेश कुमार की माताजी गुंजेश्वरी देवी जी जमशेदपुर आई है और उनका आदित्यपुर के मेडिट्रिना हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।
इस सूचना से सहज तरीका से मन में भाव आया कि अस्पताल में चलकर उनका दर्शन भी किया जाए और आशीर्वाद भी लिया जाए। देखने की तमन्ना थी कि गुंजेश्वरी देवी जी कैसी हैं और डॉ विमलेश कुमार समेत अपने अन्य बच्चों में किस तरह से सनातनी संस्कार दिए?
व्यस्तता भरी जिंदगी में प्राथमिकताओंको तय करने की प्राथमिकता को समुचित अहमियत नहीं देने का परिणाम रहा कि हम हॉस्पिटल जाकर माता तुल्य गुंजेश्वरी देवी जी से नहीं मिल सके। हर रोज प्रोग्राम टलता रहा।
अचानक एक दिन सूचना मिली कि गुजेश्वरी देवी जी (उम्र 86 वर्ष) अब इस दुनिया में नहीं रही। सुनकर स्तब्ध रह गए। उनसे न मिल पाने के हुए दुख को शब्दों में बयां नहीं कर सकते।
इससे एक सीख भी मिली कि किसी काम को टालिए मत। बीमारी के इलाज या बीमार व्यक्ति से मिलने के कार्यक्रम को तो बिल्कुल नहीं।
बात गुंजेश्वरी देवी जी. आज 20 सितंबर 2024 शुक्रवार को पटना में उनका श्राद्ध कर्म हो रहा है।
विडंबना देखिए कि पितृ पक्ष के दौरान घर पर रहने की अनिवार्यता के कारण चाहते हुए भी पटना जाना संभव नहीं हो पाया।
अब इन पंक्तियों के माध्यम से ही परम आदरणीय गुंजेश्वरी देवी जी की पुण्य आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें नमन कर रहे हैं।
गुंजेश्वरी देवी जी एक धर्म परायण महिला थी. अपने पति और बिहार सरकार के लोक निर्माण विभाग मेंअभियंता रहे कालिका प्रसाद ठाकुर जी (अब दिवंगत) के साथ उन्होंने पटना में सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाया. प्रचार प्रसार से दूर रहकर वे धर्म और संस्कार को आगे बढ़ाने में जुटी रही।
कालिका प्रसाद ठाकुर जी भी अपने कार्य के प्रति अटूट समर्पण और कर्मचारियों के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से बहुत कुछ किया. उनका भी बच्चों की शिक्षा और संस्कारों को आत्मसात करने पर जोर रहता था।
अपने करीब चार दशक की सरकारी नौकरी के दौरान वे समय निकालकर जरूरतमंद, समाज और धर्म की सेवा के लिए सदा तत्पर रहते थे।
गुंजेश्वरी देवी जी भी उन्हीं के पद चिन्हों पर आजीवन चलती रहीं अपने बच्चों में ऐसे संस्कार विकसित किए कि सभी आज अति प्रतिष्ठित और सम्मानीय जीवन जी रहे है। माता-पिता से मिले संस्कारों को आगे बढ़ारहे हैं।
गुंजेश्वरी देवी जी का एक ही सिद्धांत था – बच्चों को अच्छा संस्कार दीजिए ताकि वे सनातन परंपरा को आगे बढ़ाते रहें। दूसरों की हमेशा मदद कीजिए. बिना कुछ अपेक्षा किए हुए।
यदि आप किसी से कुछ अपेक्षा नहीं करेंगे और मदद कर दिया करेंगे तो जीवन में आपको हमेशा खुशहाली ही मिलेगी. अपेक्षा रखेंगे तब कष्ट होगा।
ईश्वर का आशीर्वाद देखिए कि गुंजेश्वरी देवी जी के दोनों पुत्रों ने ऐसी व्यवस्था की कि गुंजेश्वरी देवी जी अंतिम इच्छा के अनुरूप वे देवभूमि बिहार के बक्सर चरित्र वन स्थित गंगा के किनारे पंचतत्व में विलीन हुई।
गुंजेश्वरी देवी जी की दृढ़ मान्यता थी कि जब वे अपना नश्वर शरीर त्याग कर अनंत यात्रा पर निकलें तो उनका अंतिम संस्कार इस बक्सर के गंगा घाट पर हो जहां हमेशा से परिवार के लोगों की अंत्येष्टि होती आई है।
गुंजेश्वरी देवी जी का परिवार मूल रूप से बिहार के रोहतास जिले के दिनारा क्षेत्र में स्थित बीसी खुर्द गांव का रहने वाला है।
गुंजेश्वरी देवी जी के अंतिम संस्कार से लेकर श्राद्ध कर्म तक में सनातनी परंपरा का बखूबी पालन किया जा रहा है।
उनके दोनों पुत्रों टाटा मोटर्स जमशेदपुर में सीनियर मैनेजर रहे कमलेश कुमार और जमशेदपुर में ही पदस्थापित (चिकित्सा पदाधिकारी, झारखंड स्वास्थ्य सेवाएं, सदर अस्पताल जमशेदपुर) डॉ विमलेश कुमार ने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बिहार की राजधानी पटना के वेस्ट पटेल नगर में पिताजी द्वारा बनाए गए मकान में 12 दिनों का श्राद्ध कर्म को संपन्न करा रहे हैं।
जिस श्रद्धा और विश्वास के साथ गुंजेश्वरी देवी जी का श्राद्ध कर्म किया जा रहा, वह समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है।
ऐसा इसलिए कि आज के जमाने में महानगरों या विदेशों में रहने वाली नई पीढ़ी अपने माता-पिता समेत अन्य पूर्वजों के लिए समय नहीं निकाल पा रही।
श्राद्ध कार्यक्रम को भी झटपट अंदाज में निपटाने में संकोच नहीं करती। श्राद्ध कर्म की समय अवधि को भी घटा रही।
ऐसे में गुंजेश्वरी देवी जी के दोनों पुत्र अपने संस्कारों के तहत जिस परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे उसे देखकर न सिर्फ लोग प्रेरित होंगे बल्कि यह कहने से भी संकोच नहीं कि कालिका प्रसाद ठाकुर जी और गुंजेश्वरी देवी जी ने बच्चों में जो संस्कार दिए हैं, वैसे संस्कार हर किसी को अपने बच्चों को देने चाहिए।
हमारी ओर से भी गुंजेश्वरी देवी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि और इस पुण्यात्मा को कोटि कोटि प्रणाम।