रांची। रामगढ़ के समाजसेवी राम आशीष ठाकुर का श्राद्ध कर्म आज विकास कॉलोनी स्थित उनके आवास पर संपन्न हुआ। रांची रातू के प्रख्यात कर्मकांडी पंडित गौरीशंकर झा ने राम आशीष बाबू के छोटे पुत्र अनिल ठाकुर के हाथों धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न कराया।
इस अवसर पर रामगढ़, हजारीबाग व रांची समेत कई शहरों से जुटे लोगों और स्थानीय निवासियों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
राम आशीष बाबू की स्मृति में प्रकाशित पुस्तक पितृ कृपा का विमोचन भी किया गया और उपस्थित अतिथियों के बीच इसका वितरण हुआ।
राम आशीष बाबू के जेष्ठ पुत्र समाजसेवी कपिल देव ठाकुर की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक में माता पिता के महत्व को धार्मिक नजरिए से रेखांकित किया गया है और देव व पितर की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक के प्रबंध संपादक धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के बीच वितरण निशुल्क वितरण करने के लिए प्रकाशित इस पुस्तक में श्राद्ध और पितृ पक्ष के बारे में भी सारगर्भित जानकारी दी गई है जो नई पीढ़ी के लिए बहुत काम की साबित होगी।
इस अवसर पर रांची में पद स्थापित स्टेट जीएसटी के वरीय अधिकारी मिथिलेश कुमार , रांची राजपूत समाज के अजय सिंह, रंजीत सिंह, धन्यवाद निवासी धनबाद निवासी और विहंगम योग के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद ठाकुर , मुंगेर के ललन ठाकुर , रांची के वीरेंद्र मोहन प्रसाद, बिहार के मधुबनी के घोघरडीहा नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष श्रवण ठाकुर व काठमांडू के भुनेश्वर ठाकुर समेत समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने इस पुस्तक की सराहना की।
बताते चलें कि राम आशीष बाबू ने रामगढ़ विकास कॉलोनी स्थित आवास पर दो फरवरी को अंतिम सांस ली थी। वे 94 वर्ष के थे।
मूल रूप से बिहार से सीतामढ़ी इलाके के निवासी राम आशीष बाबू ने 1950 के दशक में जमशेदपुर में केजर कंपनी में नौकरी की। तब इंग्लैंड की केजर कंपनी टाटा स्टील को अपनी सेवाएं प्रदान कर रही थी।
कुछ साल तक केजर कंपनी में सेवा देने के बाद राम आशीष बाबू एनसीडीसी में आ गए। रामगढ़-हजारीबाग समेत आसपास के इलाकों में उन्होंने एनसीडीसी को सेवा प्रदान की।
नौकरी से रिटायर करने के बाद उन्होंने समाज सेवा को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया।
रामगढ़ को निवास स्थान बनाते हुए वे कोयलांचल समेत कई दूसरे इलाकों में भी समाज की सेवा को सक्रिय रहे।
स्वर्णकार समाज के विकास पर उनका खास ध्यान रहा। शिक्षा के विकास पर उनका जोर रहता था। बच्चियों को आगे बढ़ाने में उनकी गहरी रुचि रहती थी। दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए वे प्रेरित किया करते थे।