हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।
सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।
ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।
कहा गया है कि यदि मनुष्य ठान ले तो वह अपने किसी भी संकल्प को साकार कर सकता है। अपनी संकल्प शक्ति के बूते वह पत्थर पर भी दूब उगा सकता है। कुछ इसी तरह के संकल्प के धनी थे मांगीलाल जी रूंगटा। जिन्होंने अपने पुरुषार्थ की बदौलत झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में एक ऐसी शख्सियत बनकर उभरे जो कल भी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे। जी हां, कोल्हान के चाईबासा में खनन उद्योग को नई परिभाषा देते हुए इसके विकास में अहम भूमिका निभाने वाले मांगीलाल जी आजीवन समाज के लिए ही सक्रिय रहे। आज उनके द्वारा स्थापित पौधा एक ऐसे वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है जिसकी शाखाएं जीवन के हर क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
कारोबारी खूबियों की धरती की पहचान रखने वाले राजस्थान के बगड़ में 1880 में मांगीलाल जी रूंगटा का जन्म हुआ था। पिता हरकरण दास जी रूंगटा और मेहदी देवी ने उनमें बचपन में ही जीवन के संस्कार सीखा दिए और यह तालीम दी कि ईश्वर से मिले इस जीवन को समाज और लोकसेवा में जरूर अर्पित करना। यही कारण रहा कि महज 19 साल की उम्र में सन 1899 में राजस्थान से सुदूर तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के चाईबासा में कारोबार की तलाश में पहुंचने के साथ ही मांगीलाल जी ने समाजसेवा को भी अपने जीवन का ध्येय बना लिया। उस समय कोल्हान का चाईबासा इलाका घनघोर जंगलों से अच्छादित हुआ करता था। यहां की धरती तो रत्नगर्भा थी ही।
शुरुआती दौर में विभिन्न प्रकार के कारोबार करने के दौरान मांगीलाल जी के व्यक्तित्व में छिपी दूरदर्शिता ने भांप लिया कि चाईबासा क्षेत्र में खनन उद्योग की असीम संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में काम किया जाना चाहिए। इसी के बाद उन्होंने खनन क्षेत्र में किस्मत आजमानी चाही। यह क्षेत्र उनके लिए पारस पत्थर साबित हुआ। अपनी मेहनत, लगन और दूरदर्शिता के बूते मांगी लाल जी रूंगटा ने चाईबासा के खनन उद्योग को अंतरराष्टï्रीय स्तर तक पहचान दिलाई। खनन के क्षेत्र में रूंगटा नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उसकी ख्याति देश-दुनिया में किसी चमकते दीपक की तरह प्रज्ज्वलित है।
मांगीलाल जी रूंगटा ने अपनी पत्नी शिवबाई देवी के सहयोग से अपने सभी छह पुत्रों मदन गोपाल जी रूंगटा, चंडी प्रसाद जी रूंगटा, गौरी प्रसाद जी रूंगटा, विश्वनाथ जी रूंगटा, सीतारामजी रूंगटा और सत्यनारायण जी रूंगटा को विरासत में मिले कुलीन संस्कारों के साए में शिक्षित किया। उनका ध्येय सूत्र हुआ करता था-कारोबार करो, समाज के साथ। समाज के लिए वे हर पल, हर संभव कार्य करने के लिए तत्पर रहा करते थे। ईश्वर की कृपा से मांगीलाल जी रूंगटा ने धर्म समाज सेवा का जो पेड़ लगाया था वह आज वटवृक्ष बन चुका है और चाईबासा से निकलकर कई राज्यों तक फैल चुका है।