गिरधारी लाल गोयनका
आज 11 नवंबर गुरुवार को गोपाष्टमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। कई गोशालाओं में दो दिन के कार्यक्रम तय किए गए हैं। इस दिन गो माता की पूजा की जाती है। भगवान श्रॉीकृष्ण ने इस त्योहार की शुरुआत कराई थी। सनातन सिंधु डॉट कॉम ने गोपाष्टमी के मौके पर कलकत्ता पिंजरापोल सोसाइटी (गौशाला) की चाकुलिया शाखा के अध्यक्ष गिरधारी लाल जी गोयनका से गोपाष्टमी के बारे में बात की। प्रस्तुत है उनके विचार : चंद्रदेव सिंह राकेश।
गोपाष्टमी भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण जी का अतिप्रिय नाम गोविन्द पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो- गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को ेगोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अबतक चला आ रहा है।
हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। गाय को मां का दर्जा दिया जाता हैं क्योंकि जैसे एक मां का हृदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक मां अपने बच्चों को हर स्थिति में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।
गोपाष्टमी के शुभअवसर पर गौशालाओं में गो संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौ माता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितों द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में प्रसाद वितरण किया जाता है।
सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व संवर्धन का संकल्प लेते हैं।
शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए।
इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से प्रगत्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं । गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनके चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
क्या है गोपाष्टमी की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने मां यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की। कृष्ण कहते हैं कि माां मझुे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने देने को जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभदिन था।
बालक कृष्ण गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं। गोपाष्टमी के अवसरपर गऊशालाओं व गायपालकों के यहां जाकर गायों की पूजा अर्चना की जाती है।
इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओंसे इनकी पूजा की जाती है। महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजाकर गऊओं को तिलक लगाती हैं। गायों को हराचारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
गोपाष्टमी पर गोमाताओं की पूजा भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है तथा इनमें सभी देवताओं का वास माना जाता है। कई स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में सत्संग संपन्न होते है।
गोपाष्टमीके उपलक्ष्य में जगह-जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है। भंडारे में श्रद्धालु अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं। वहीं गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है।
मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में रात्रि कीर्तन में श्रद्धालु भक्ति रचनाओं का रसपान करते हैं। इस मौके पर प्रवचन एवं भजन संध्या में उपस्थित श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। गोसेवा से जीवन धन्य हो जाता है तथा मनुष्य सदैव सुखी रहता है।