चंद्रदेव सिंह राकेश
जमशेदपुर : सनातन धर्मशास्त्र के उद्भट विद्वान व कथा मर्मज्ञ पंडित सीताराम जी शास्त्री झारखंड प्रवास पर हैं. वे रविवार को जमशेदपुर में हैं. टाटा की पावन धरती पर उन्होंने गीता पर अपना 400 वां प्रवचन दिया।
शहर के सोनारी स्थित समाजसेवी व धर्मप्रेमी राजा झुनझुनवाला- रवि झुनझुनवाला के आवास पर प्रवास कर रहे पंडित सीताराम शास्त्री को वैसे तो श्रीमद भागवत कथा, श्री राम चरित, श्री शिव चरित, श्री हनुमत चरित पर व्याख्यान देने में महारत हासिल है पर कोरोना काल में इन दिनों गीता पर व्याख्यान देने पर खास ध्यान दे रहे हैं।
इसके लिए उन्हें चाहनेवालों व सनातन धर्म में गहरी रुचि रखनेवाले धर्म प्रेमियों ने स्वाध्याय ग्रुप नाम से समूह बनाया है. जूम ऐप के माध्यम से शास्त्री जी हर दिन शाम पांच से छह बजे तक गीता पर प्रवचन देते हैं। शनिवार 25 दिसंबर को सोनारी स्थित झुनझुनवावा आवास से ही उनका गीता पर 400 वां ऑनलाइन कार्यक्रम पूरा हुआ।
गोविंद दोदराजका समेत कई गणमान्य लोगों ने की शास्त्री से मुलाकात
प्रमुख साहित्यसेवी व धर्मसेवी और विश्व हिंदू परिषद से संबद्ध विश्व गीता संस्थान के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गोविंद अग्रवाल (दोदराजका)समेत कई गणमान्य लोगों ने रविवार को सोनारी स्थित झुनझुनवाला आवास पर पहुंचकर शास्त्री से मुलाकात की और विभिन्न विषयों पर विचार विमर्श किया।
दोदराजका ने गीता पर गहन चर्चा की और ये जानना चाहा कि आम जनता तक खासकर नई पीढ़ी को गीता से जोडऩे के लिए और क्या करना चाहिए?
शास्त्री जी के साथ इस विषय पर भी परामर्श किया गया कि कोरोना जनित इस समय में लोगों के आचार-विचार मे आ रहे परिवर्तन व लोगों में सकारात्मकता कायम रखने के लिए गीता को किस तरह से प्रभावी बनाया जा सकता है?
शास्त्री जी ने दोदराजका को सलाह दी कि अपने क्षेत्र में गीता का प्रचार प्रसार करने के लिए वे इसे महा अभियान का स्वरूप प्रदान करें।
रविवार शाम चार बजे पंडित शास्त्री जमशेदपुर के पूर्वी सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन तुलसी भवन के बिष्टुपुर स्थित सभागार में एक संगोष्ठी में संवाद करेंगे।
जमशेदपुर में हाल के दिनों में उनका पहला सार्वजनिक कार्यक्रम होगा. वैसे पूर्वी सिंहभूम की धरती से उनका दो दशक से ज्यादा समय से जुड़ाव रहा है। चाकुुलिया में झुनझुनवाला परिवार के आमंत्रण पर उनका हर वर्ष सालाना कार्यक्रम होता रहा है।
पंडित सीताराम शास्त्री का जीवन परिचय
पंडित सीताराम शास्त्री का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। वे सभी भक्तों के मार्गदर्शक एवं संजीवनी बूटी की तरह हैं।
तेजस्वी एवं प्रकांड विद्वान सीताराम शास्त्री का जन्म एक अत्रिगोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी माता मीना देवी एवं पिता पंडित महेश्वर उपाध्याय परम धार्मिक व्यक्ति थे। इसी कारण बचपन से ही शास्त्री जी की रूचि धार्मिक कार्यों में रही है। इनका निवास स्थान असम का तिनसुकिया है।
अल्पायु में ही इन्हें वैदिक परंपरा एवं धर्म – संस्कृति क ज्ञान प्राप्त हुआ। शास्त्री जी ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी (उ.प्र.) से प्रथम श्रेणी में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात अपरिग्रहव्रत्यारी आचार्य स्वामी श्री भागवातानन्द सरस्वतीजी महाराज के श्रीचरणों के सानिध्य में रहकर अनेक सदग्रंथो, वेदों आदि का अध्ययन किया।
शास्त्री जी विलक्षण प्रतिभा के धनी हैंं। वर्तमान समय में कोरोना महामारी के परिदृश्य में भी भक्तों के प्रति उनका वात्सल्य – प्रेम प्रभावित नहीं हुआ एवं आधुनिक तकनीक जूम के माध्यम से इन्होनें अपने सभी भक्तों को साहस एवं निर्भय जीवन जीने की सीख दी।
कोरोना काल की शुरुआत से वर्तमान तक शास्त्रीजी का आशीर्वाद भक्तों को निरंतर मिल रहा है जो उनके अदन्य प्रेम का परिचायक है। शास्त्री जी का सरल एवं साधारण जीवन, कथा सुनाने की उनकी विलक्षण शैली, मधुर वाणी, भक्तों के प्रति उनका वात्सल्य प्रेम उन्हें लाखों में एक बनाता है।
इनकी कथाओं में बरसते अमृत का रसास्वादन सिद्ध करता है कि ये वास्तव में अर्वाचिन युग के शुक्राचार्य है।