हरिमोहन चौधरी, खड़गपुर
किसी ने ठीक कहा है कि इंसान के महत्व आकलन उसके नश्वर शरीर त्यागने के बाद समाज द्वारा की जाने वाली चर्चा से होता है. आज यही बात विजयालक्ष्मी चौधरी के साथ लागू हो रही है .
उन्होंने बिहार की राजधानी पटना से बहुत दूर पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर में 28 सितंबर 2022 को अपना नश्वर शरीर त्यागा. उनकी ससुराल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के खरौना गांव में है. शादी के कुछ समय बाद वे अपने पति और आरपीएफ में अधिकारी बी एन चौधरी के साथ खड़गपुर चली गई और यहीं की होकर रह गई. खड़गपुर शहर के झपेटापुर गोपाल नगर में उनका अपना मकान है जिसे पति बीएन चौधरी ने आरपीएफ की सेवा के दौरान बनाया था. आरपीएफ में असिस्टेंट कमांडर पद से रिटायर होने के बाद बीएन चौधरी चाचा और चौधरी चाची समेत परिवार के अन्य सदस्य यही रहने लगे.
समाज के प्रति की गई उनकी निष्काम सेवा का ही प्रतिफल है कि योग आज उन्हें शिद्दत से याद कर रहे हैं और उनकी कमी भी महसूस कर रहे हैं
विजयालक्ष्मी चौधरी को हमारे जैसे अनगिनत लोग प्यार व आदर से चौधरी चाची कहा करते थे. आज से करीब 30 – 40 साल पहले वह हमारे जैसे अनगिनत लड़कों के लिए एक ऐसी आदर्श महिला थी जो हमें गांव से बुलाकर खड़गपुर ले गई थी और वहां पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.
आज के जमाने में एकल परिवार की जो संस्कृति पनपी है उसमे घंटे दो घंटे के लिए भी घर पर मेहमान आने के दौरान नाश्ता पानी या भोजन कराने में महिलाओं के चेहरों पर परेशानी का भाव झलक आता है या यूं कहिए कि मेहमान का आना किसी बोझ के समान प्रतीत होने लगता है , उसके ठीक विपरीत चौधरी चाची घर – परिवार और गांव- जवार के बच्चों को भी पढ़ाने के लिए अपने यहां बुला लेती थी और कई कई सालों तक उन्हें परिवार के सदस्य की तरह रखकर जीवन मे कुछ करने के योग्य बना देती थीं.
वे सेवा की प्रतिमूर्ति थी. दया का रूप थीं. करुणा का सागर थीं और समाज सेवा का पर्याय थीं. आरपीएफ में अधिकारी व अपने पति की ईमानदारी की छाया उनमें साफ झलकती थी और स्व अनुशासन के प्रति उनकी कठोरता हर किसी को अनुशासित रहने के लिए एक तरह से मजबूर कर देती थी. उनके घर पर रहने वाले गांव – जवार के बच्चों और उनके सगे बेटा- बेटियों के बीच कोई अंतर नहीं रहता था. बिल्कुल समान भाव से सबकी परवरिश होती थी. कोई यह नहीं कह सकता था कि वहां किसी तरह का अंतर किया जाता था.
खड़गपुर में रहते हुए वे समाज सेवा से भी जुड़ी रहती थी और विभिन्न धार्मिक आयोजनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी. उनके चेहरे पर हमेशा रहने वाली मुस्कान उनकी पहचान से जुड़ गई थी लेकिन उनका व्यक्तित्व उनके गंभीर व्यक्तित्व की भी बानगी हुआ करता था. वे बच्चों को यही सीख देती थी कि हर हाल में शिक्षा ग्रहण करो और ईमानदारी के रास्ते पर ही हमेशा चलते रहो. जीवन पथ पर नाना प्रकार की चुनौतियां आएंगी. संघर्ष का सामना करना पड़ेगा. समाज के ताने भी सुनने पड़ सकते हैं लेकिन कामयाबी एक दिन जरूर मिलेगी. उनकी यह सीख पूरी तरह सही साबित हुई. ऐसा हमारा निजी अनुभव है.
पिछले कुछ महीनों से वे अस्वस्थ चल रही थी. लेकिन वे इससे जरा भी विचलित नहीं थी.हंसते हुए बीमारी से लड़ रही थी और डॉक्टरों के तमाम अनुमानों के विपरीत लगातार इस बीमारी को मात देने में पूरी हिम्मत के साथ डटी थी.
जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना ही होता है. चौधरी चाची भी चली गई .जीवन की सफल पारी खेलकर. अपनी तीन बेटियों और दो बेटों को योग्य बनाकर. अपने पैरों पर खड़ा करके. उन्होंने समाज के सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया. गांव- जवार के कई बच्चों को खड़गपुर लाकर और पढ़ा लिखा कर उनका करियर बनाया. इसीलिए वे खड़गपुर में भी आदर्श महिला के रूप में आदर पाती रही.
अब वे इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी तीनों बेटियों – दामाद और दोनों बेटों -बहुओ समेत भरापूरा परिवार उनके आदर्शों को आगे बढ़ाने का दमखम रखता है और ईश्वर ने इन लोगों को ऐसा करने के लिए शक्ति व सामर्थ्य भी प्रदान किया है. उनकी बड़ी बेटी निवेदिता उर्फ बुन्नी पटना के एक प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षिका है. पीएचडी डिग्री धारी बड़े दामाद डॉ क्रांति कुमार मुजफ्फरपुर के सामाजिक जीवन के एक चर्चित हस्ताक्षर है. वे भी पेशे से शिक्षक हैं. उनकी दूसरी बेटी सुमा जमशेदपुर में शिक्षिका है और दामाद प्रमोद कुमार झारखंड के सबसे बड़े अखबार प्रभात खबर के संपादकीय विभाग में वरिष्ठ पद पर जमशेदपुर में पदस्थापित हैं. तीसरी बेटी सुषमा ठाकुर सिंगापुर में शिक्षिका है और बीटेक और आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी डिग्री रखने वाले दामाद डॉ संजय ठाकुर भी सिंगापुर में ही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर आसीन है. उनके बड़े बेटे अभिषेक भारतीय रेलवे में अधिकारी हैं और नागपुर में पदस्थापित हैं जबकि छोटे बेटे अमिताभ रेलवे में उच्च श्रेणी के ठेकेदार हैं.
चौधरी चाची अपने पीछे नाती-पोतों से भरा परिवार छोड़ गई हैं. उनकी बड़ी पुत्री निवेदिता के दोनों लडक़े शाश्वत व सनातन इंजीनिरिंग करने के बाद जॉब में हैं. दूसरी पुत्री सुमा की एकमात्र पुत्री इशा जमशेदपुर के एनआईटी से इंजीनियरिंग कर रही है तो एकमात्र पुत्र आदित्य 11 वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा है. तीसरी पुत्री सुषमा ठाकुर का बड़ा पुत्र सुजय सिंगापुर में सुरक्षा मंत्रालय से जुड़ा है तो छोटा पुत्र जयेश स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहा है.
चौधरी चाची के बड़े पुत्र अभिषेक की बेटी अंकिता इंजीनियरिंग करने के बाद बेंगलुरु में जॉब कर रही है तो बेटा यश पढ़ाई कर रहा है. छोटे बेटे अमिताभ की बेटी सृति चौधरी उर्फ पाखी भी इंजीनियरिंग करके बेंगलुरू में ही जॉब कर रही है तो छोटी बेटी हर्षिता इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है.
चौधरी चाची का मायके मुजफ्फरपुर जिले के मोरसन्द गांव में है जो अब सीतामढ़ी जिले का अंग है. इसी गांव में उनका जन्म 27 सितंबर 1944 को हुआ था.
चाची अपने गांव की पहली ऐसी लड़की थी जिसने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. उनके पिता अंग्रेजों के जमाने में दारोगा हुआ करते थे.वे भी एक आदर्शवादी इंसान थे. चौधरी चाची के चार भाइयों में राघवेंद्र राय बिहार पुलिस में थे. कृष्णदेव राय रेलवे में सीटीआई हुए है. नरेंद्र देव राय किसान और धीरेंद्र देव राय शिक्षक हैं.
यह उनका सौभाग्य रहा कि अपने पति बीएन चौधरी के रहते और उनकी आंखों के सामने अपने नश्वर शरीर को त्यागा. हर महिला की चाहत होती है कि वह अपने पति के रहते हुए इस दुनिया से विदा हो. हमारी भी चौधरी चाची इसी श्रेणी में आने वाली सौभाग्यशाली महिला साबित हुई.
हमारे जैसे अनगिनत प्रशंसक और अनुग्रहित लोग हमेशा चौधरी चाची को उनके दिए आदर्श को जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए एक संबल के रूप में महसूस करते रहेंगे.09 अक्टूबर 22 को खड़गपुर के गोपालपुर स्थित आवास पर उनका श्राद्ध कार्यक्रम आयोजित हुआ.
ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें .अपनी चौधरी चाची को हमारा कोटि-कोटि नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि.