शिवम
जमशेदपुर। झारखंड की राजधानी रांची से संबंध रखनेवाले और फिलहाल जमशेदपुर को हाल मोकाम बनाकर वास्तु व ज्योतिष की परामर्श सेवा प्रदान करनेवाले वास्तुशास्त्री दिव्येंदु त्रिपाठी की एक लेखक रूप में भी विशिष्ट पहचान बन रही है।
अब उनकी दूसरी पुस्तक ‘डीएनए : पुरातत्व और वैदिक संस्कृतिÓ
प्रकाशित होकर पाठकों के बीच आने जा रही है। फिलहाल यह पुस्तक आनलाइन प्लेटफार्म अमेजन पर उपलब्ध है और वहां खूब धूम मचा रही है।
यह पुस्तक नवीनतम आनुवंशिक अनुसंधानों को समेटते हुए वैदिक सभ्यता से संबंधित तथ्यों और भ्रांतियों को रेखांकित करती है। गत बीस वर्षों के दौरान हुए नवीन पुरातात्विक निष्कर्षों की विवेचना भी उक्त पुस्तक में है।
इसका प्रकाशन सर्वभाषा ट्रस्ट प्रकाशन नई दिल्ली से हुआ है। इसकी भूमिका प्रख्यात पुरातत्वविद ज्ञानेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने लिखा है। इसकी पूर्वपीठिका को जर्मनी के प्रख्यात विद्वान और लेखक आंद्रियाज़ लेइत्ज ने लिखा है।
यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है ।इसे विशिष्ट लिंक द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसका ई-बुक संस्करण भी गूगल प्ले बुक से प्राप्त किया जा सकता है। इसका मूल्य 400 रुपये है।
ऑनलाइन खरीदारी करने पर 20 प्रतिशत की छूट पर मिल रही है। यह पुस्तक निश्चित रूप से एक नवीन विमर्श की ओर ध्यानाकृष्ट करती है।
वैसे भी दिव्येन्दु त्रिपाठी की अन्तर्प्रज्ञा स्वाध्याय की अद्यतनता की उपस्थिति का बोध भाषा के माध्यम से निरंतर कराती रहती है। वेद वांगमय की सार्वकालिक गत्यात्मकता के बीज इनकी प्रज्ञा की परिधि में बिंबित होते रहते हैं और आधुनिक विज्ञान के प्रदेश की जड़ उसमें दिखाई पड़ती है।
उनकी इस नवीन कृति ‘डीएनए: पुरातत्व और वैदिक संस्कृतिÓ में उसी वेद वाङ्गमय के तपे तपाए प्रकाश-केन्द्र में डीएनए के नए फॉसिल की तात्विक तलाश है।
दिव्येन्दु त्रिपाठी की यह चकित करने वाली तलाश डीएनए : पुरातत्व और वैदिक संस्कृति स्वाध्यायशील बौद्धिकों की जिज्ञासा तो बढ़ाएगी ही यह शोधार्थियों के लिए अत्याधिक उपादेश सिद्ध होगी।