उपासना सिन्हा
खिड़की में खड़ी सुनीता पेड़ को देख रही थी l उसकी नजर एक घोंसले पर पडी l घोंसले में दो चूजे और एक चिड़िया थी l कुछ देर में एक चिङा आया उसके मुह में दाना था जो उसने चिड़िया के मुह में दिया और चिड़िया ने चूजे के मुह में I ऐसा उन्होंने कई बार किया l सुनीता को ये सब देखना अच्छा लगा l
शाम को जब उसके पति रमेश आये तो उसने उन्हें ये बताया I रमेश नें सुनीता से अपने बच्चों के बारे में पूछा कि उनका फोन आया था क्या ? सुनीता नें ना में अपना उत्तर दिया फिर रमेश के लिए चाय बनाने चली गई I
चाय पीते पीते रमेश नें सुनीता के हाथ में अपने हाथ को रखते हुए कहा कि इतना मत सोचा करो अपने बच्चो के बारे में I वह अपने जिंदगी में व्यस्त हैंl खुश हैंl तुम भी खुश रहा करो l बच्चे हमेशा साथ नहीं रह सकते छुट्टियों में तो आते ही हैं ना I तुम किसी काम में अपना मन लगाने की कोशिश करो l सुनीता नें सिर हिला के अपनी सहमती जाहिर की l
दूसरे दिन रमेश के ऑफिस जाने के बाद सुनीता अपने काम खत्म कर फिर खिड़की से चिड़िया के परिवार को देख रही थी I आज भी वही सब हो रहा था I चिङा
दाना लाया ,चिड़िया को दिया, चिड़िया ने चूजों को I अब सुनीता हर दिन उनको देखती l सुनीता उससे दिन से जुड़ती जा रही थी l कुछ ही दिनों में चूजे थोड़े बड़े हो गए l चिड़िया उसे उड़ना सीखा रही थी I
सुनीता को याद आ रहा था कि कैसे वो भी अपने बच्चों को बड़ा कर रही थी I एक दिन सुनीता नें देखा कि चूजे बड़े हो गए ,अपने से दाना भी चुगने लगे हैं और उड़ना भी सीख गये l
अब चिङा और चिड़िया को उनका ख्याल नहीं रखना पड़ता है I खिड़की में आज सुनीता से पहले वो दोनों चूजे जो अब बड़े हो चुके थे वो थे मानो सुनीता को अलविदा कहने आए हों l
उनकी चहचहाहट को सुन कर सुनीता खिड़की के पास आई l कुछ देर चहचहाने के बाद वो दोनों नीले आसमान की ऊंचाईयों में उड़ते चले गए I देखते ही देखते वे सुनीता की आँखों से ओझल हो गए I
सुनीता की आंखे शून्य को देखती रही I सबकी अपनी दुनियाँ होती है ये सोच सुनीता भी अपनी दुनियाँ में वापस लौटने की फिर से कोशिश करती है जो उसने शादी के बाद अपनी जिम्मेवारी निभाने के लिए छोड़ दी थी I
वो पहले लिखा करती थी अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया करती थी I सुनीता नें फिर से कलम को थामा और फिर लिखने बैठ गई I कब शाम हो गई सुनीता को पता भी ना चला l
रमेश के आते ही उसने अपनी मधुर मुस्कान और मीठी चाय के साथ उसका स्वागत किया l रमेश सामने मेज पर पडी उसकी लिखी हुई कविता को पढ़ रहा था I पढ़ने के बाद रमेश नें बड़े प्यार से सुनीता को कहा………जिंदगी की शाम मे तुम्हें तुम्हारी पहली उड़ान मुबारक हो l
(लेखिका जमशेदपुर झारखंड में रहती हैं)l